Pratyagira Devi Kavach in Hindi and Sanskrit
प्रत्यंगिरा कवच
देव्युवाच
भगवन् सर्वधर्मज्ञ सर्वशास्त्रार्थपारग।
देव्या: प्रत्यंगिरायाश्च कवचं यत्प्रकाशित।।
देवी ने कहा-हे सभी धर्मों को जानने वाले, सभी शास्त्रों के पारगामी भगवन जो आपने प्रत्यंगिरा देवी के कवच को प्रकाशित किया है।।
सर्वार्थसाधनं नाम कथयस्व मयि प्रभो।
भैरव उवाच
श्रुणु देवि प्रवक्क्ष्यामि कवचं परमाद् भूतम॥
जो सभी प्रकार के प्रयोजनों की सिद्धि करने वाला है। हे प्रभो! उसे आप मुझसे कहें।
सर्वार्थसाधनं नाम त्रैलोक्ये चातिदुर्लभम्।
सर्वसिद्धिमयं देवि सर्वेश्वर्यप्रदायकम्॥
भैरव बोले-हे देवी! मैं अति अलौकिक कवच का वर्णन कर रहा हूँ। उसे तुम सुनो, यह कवच सभी प्रकार के प्रयोजनों का साधक है तथा तीनों ही लोक मे अतिदुर्लभ है। हे देवी! यह सभी प्रकार की सिद्धियों से युक्त है तथा समस्त ऐश्वर्य को प्रदान करने वाला है।।
पठनांचावणान्मर्त्य: त्रैलोक्येशवभागभवेत ।
सर्वार्थसाधकस्यास्य कवचस्य ऋषिः शिवः ।।
इस कवच का पठन तथा श्रवण करने से मनुष्य तीनो लोकों के ऐश्वर्य से संपन्न हो जाता है, सभी प्रकार के प्रयोजनों की सिद्धि करने वाले इस कवच के शिव ऋषि है।
छंदोविराटपरा शक्तिर्जगद्धात्री च॒ देवता।
धर्मार्थकाममो क्षेषु विनियोग: प्रकीत्तित:॥
विराट छन्द है परा शक्ति जगद्धात्री देवता हैं इसका धर्म अर्थ, काम तथा मोक्ष में बिकी प्राप्ति हेतु विनियोग किया जाता है।
प्रणवं मे शिर: पातु वाग्भवं च ललाटकम।
ह्वीं पातु दक्षनेत्रं मे लक्ष्मीर्वाम सुरेश्वरी ॥
इस कवच का प्रवण मेरें शिर की रक्षा करें, वाग्भव ललार को रक्षा करे। ह्री मेरे दाहिने नेत्र की तथा सुरेश्वरी लक्ष्मी बायें नेत्र की रक्षा करें।
प्रत्यंगिरा दक्षकर्णे वामे कामेश्वरी तथा।
लक्ष्मी प्राणं सदा पातु बंधनं पातु केशव:॥
प्रत्यंगिरा दाहिने कान की, कामेश्वरी बायें कान की, लक्ष्मी मेरे प्राण की तथा बन्धन स्थल की केशव रक्षा करें।
गौरी तु रसनां पातु, कंठ पातु महेश्वर:।
स्कंधदेशं रति: पातु, भुजौ तु मकरध्वज:॥
गौरी जिह्वा की रक्षा करें, महेश्वरी कण्ठ की रक्षा करें, रति स्कन्ध भाग की तथा मकरध्वज अर्थात् कामदेव दोनों भुजाओं की रक्षा करें।
शंखं निधिकर: पातु वक्ष: पद्मनिधिस्तथा।
ब्राह्मी मध्यं सदा पातु, नाभि पातु महेश्वरी॥
निधिकर शंख अथति कण्ठ की रक्षा करें, पध्मनिधि वक्षस्थल की रक्षा करें, ब्राह्मी मध्य भाग की रक्षा करें तथा महेश्वरी नाभि की रक्षा करें॥
कौमारी पृष्ठदेशं तु, गुह्ं रक्षतु वैष्णवी।
वाराही च कटि पातु, चैंद्री पातु पवद्धयम॥
कौमारी पृष्ठभाग की , वैष्णवी गुह्मया अथति गोपनीय अंगों की, वाराही कटि प्रदेश
की तथा ऐन्द्री दोनों पावों की रक्षा करें।
भार्या रक्षतु चामुण्डा, लक्ष्मी रक्षतु पुत्रकान।
इंद्र: पूर्वे सदा पातु , आग्नेय्यामग्निदेवता॥
चामुण्डा पत्नी की रक्षा करें, लक्ष्मी पुत्रों की रक्षा करें, इन्द्र शरीर के पूर्व दिशा की रक्षा करे तथा अग्निदेवता आग्नेय दिशा की रक्षा करें।
याम्ये यम: सदा पातु , नैऋत्यां निऋतिस्तथा।
पश्चिमे वरूण: पातु , वायव्यां वायुदेवता॥
यम देव याम्य दिग्भाग की तथा निऋति नैऋत्य भाग की, वरुण पश्चिम दिग्भाग की तथा वायुदेवता वायव्य दिक्कोण की रक्षा करें।
सौम्यां सोम: सदा पातु चैशान्यामीश्वरो विभुः।
ऊर्ध्वे प्रजापति: पातु हाधश्चानंत देवता ।।
सोम अर्थात् चन्द्र देव सदा सौभ्य दिशा की रक्षा करें, व्यापक रूप से विद्यमान ईश्वर ऐशान भाग की रक्षा करें॥
राजद्वारे श्मशाने च अरण्ये प्रांतरे तथा।
जले स्थले चांतरिक्षे , शत्रूणां निवहे तथा॥
राजद्वार, श्मशान अरण्य, विराज, जल, थल अन्तरिक्ष तथा शत्रुसमूह के मध्य।
एताभि: सहिता देवी चतुर्बीजा महेश्वरी।
प्रत्यंद्विरा महाशक्ति: सर्वत्र मां सदावतु॥
इन सब के माथ चतुर्बीजा महेश्वरी महाशक्ति प्रत्यंगिरा सर्वत्र तथा सदा मेरी रक्षा करें।
इति ते कथितं देवि, सारात्सारं परात्परम्।
सर्वार्थसाधन॑ नाम कवचं परमादभुतम्॥
हे देवी यह मैनें तुमसे निचोड़ का भी निचोड़ परात्पर, सभी प्रयोजनों की सिद्धि करने वाले अति अद्भुत कवच के बारे में कहा।
पुरुषो दक्षिणे बाहौ नारी वामभुजे तथा।
बहुपुत्रवती भूत्वा धन्यापि लभते सुतम्॥
जो पुरुष इस कवच को दाहिनी भुजा में तथा स्त्री बाये भुजा में धारण करते हैं वे अत्यधिक सन्तति सम्पन्न होकर योग्य पुत्र को प्राप्त करते हैं।
ब्रह्मास्त्रादीनि शस्त्राणि नैवकृन्तन्तितत्तनुम।
एतत्कवचमज्ञात्वा यो जपेत्परमेश्वरी॥
ब्रह्मास्त्र जैसे शास्त्र भी उपरी शरीर पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकते हैं किन्तु इस कवच को जाने बिना जो परमेश्वरी प्रत्यंगिरा का जप करता हैं।
दारिद्रयं परम प्राप्य सोअचिरान्मृत्युमाप्नुयात।
वह दरिद्र होकर शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
इति श्रीरुद्रयामले तन्त्रे
पंचांगखंडे प्रत्यंगिरायाः: सर्वार्थसाधनं नाम कवच समाप्तम्॥
इस प्रकार रुद्रयामलतन्त्र में पंचांगखंड में प्रत्यंगिरा देवी का सर्वार्थ साधन नामक कवच समाप्त हुआ।।
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